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शैडो प्रैक्टिस से काम चला रही हैं बॉक्सर पूजा
रोशन झा. नई दिल्लीकोरोना के चलते घर में कैद खिलाड़ी अब ऊबने लगे हैं। अभी कुछ दिनों पहले ऑस्ट्रेलियाई ओपनर डेविड वॉर्नर ने अपनी यह निराशा ट्विटर पर जाहिर की थी। कुछ ऐसा ही एशियन गेम्स की मेडलिस्ट और इस बार ओलिंपिक्स के लिए क्वॉलिफाई कर चुकीं रानी का भी कहना है। पूजा ने कहा कि 10 साल के अपने बॉक्सिंग करियर में यह पहला अवसर है जब वह इतने समय तक घर पर रही हैं। उन्होंने कहा कि घर का खाना खाकर अच्छा लग रहा है लेकिन रूटीन वर्क नहीं हो पाने से ऊबने लगी हूं। ग्लब्स नहीं पहन पा रहीं पूजा ने बताया कि स्थिति यह हो गई है कि काफी समय हो गए, बॉक्सिंग ग्लब्स नहीं पहन पाई हूं। उन्होंने कहा, 'बॉक्सिंग में प्रैक्टिस के लिए हमेशा एक पार्टनर की जरूरत होती है। काफी समय हो गए, ग्लब्स नहीं पहन पाई हूं। आखिर पहनूं तो प्रैक्टिस किसके साथ करूं। ऐसे में कर लेती हूं लेकिन यह भी कितनी देर कर सकती हूं। कुछ देर के बाद ही ऊब जाती हूं। घर में थोड़ा-बहुत जिम का सामान है, उसी से काम चला लेती हूं क्योंकि सारे जिम बंद कर दिए गए हैं। घर के सारे सदस्य साथ हैं। उनके साथ समय भी अच्छा बीत रहा है। लेकिन प्रैक्टिस के समय पर जैसे बेचैनी बढ़ जाती है।' अब इंतजार नहीं हो रहा सोमवार को ही आईओसी ने ओलिंपिक्स की नई तारीख की घोषणा कर दी। इस बारे में जब पूजा से पूछा तो उनका जवाब था, 'किसी को नहीं पता कि यह कोरोना संकट कब हटेगा क्योंकि यह पूरी दुनिया में फैला हुआ है। ऐसे में एक साल बाद का समय रखना मेरे लिहाज से ठीक है। लेकिन अपनी व्यक्तिगत बात करूं तो अब इंतजार नहीं हो रहा। एक तरह से छटपटाहट होने लगी है कि कितनी जल्दी ओलिंपिक्स रिंग में उतरूं।' कभी-कभी दौड़ लगा लेती हूं पूजा ने बताया कि वह सरकार द्वारा बताए गए सोशल डिस्टेंसिंग का भरपूर पालन कर रही हैं। लेकिन, मजबूरी में पार्क में दौड़ने से खुद को नहीं रोक पातीं। उन्होंने कहा, 'घर में अंदर से ताला लगा रखा है। केवल जरूरत पड़ने पर पापा घर से निकलते हैं लेकिन वह हर तरह की सावधानी बरतते हैं। इसके अलावा किसी को भी घर के अंदर आने की इजाजत नहीं है और ना ही कोई निकलता है। सोशल डिस्टेंसिंग में तो अभी पार्क में घूमना भी मना है। लेकिन, मैं सुबह पार्क में दौड़ने से खुद को नहीं रोक पाती हूं। यह पार्क मेरे घर के ठीक सामने है और जब मैं जाती हूं तब तक वहां कोई नहीं रहता है। मैं इसलिए चली भी जाती हूं, नहीं तो नहीं जाती।'
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