Football
Hockey & more | Navbharat Times
Sports News in Hindi: Latest Hindi News on Cricket
Tennis
परिवार नहीं भर सकता था अकैडमी की फीस, जानें- सोनू से सुरेश रैना बनने का सफर
नई दिल्ली सैन्य अधिकारी त्रिलोकचंद रैना को आयुध फैक्ट्री में बम बनाने में महारत हासिल थी। लेकिन इसके लिए उन्हें सिर्फ 10 हजार रुपये की तनख्वाह मिलती थी। यह सैलरी बेटे () के क्रिकेटर बनने के सपने को पंख देने के लिए काफी नहीं थी। संघर्ष के उन दिनों में हालांकि की गई कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प रैना के काम आया, जिसमें भाग्य ने भी उनका साथ दिया। इस मुश्किल समय के दो दशक बाद तक दुनिया भर के क्रिकेट मैदानों में रैना ने अपने कौशल का लोहा मनवाया। उन्होंने हाल ही में अपने सफल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा है। रैना ने निलेश मिसरा के 'द स्लो इंटरव्यू' साक्षात्कार में बताया कि उनके परिवार में 8 लोग थे और उस समय दिल्ली में क्रिकेट अकादमियों की मासिक फीस 5 से 10 हजार रुपये प्रति महीना होती थी। इस दौरान लखनऊ के गुरु गोविंद सिंह खेल कॉलेज (Guru Govind Singh Sports University, Lucknow) में उनका चयन हुआ और फिर सब कुछ इतिहास का हिस्सा बन गया। रैना ने कहा, 'पापा सेना में थे, मेरे बड़े भाई भी सेना में हैं। पापा अयुध फैक्ट्री में बम बनाने का काम करते थे। उन्हें उस काम में महारत हासिल थी।' रैना के बचपन का नाम सोनू है। उन्होंने कहा, 'पापा वैसे सैनिकों के परिवारों की देखभाल करते थे, जिनकी मृत्यु हो गई थी। उनका बहुत भावुक काम था। यह कठिन था, लेकिन वह सुनिश्चित करते थे कि ऐसे परिवारों का मनीऑर्डर सही समय पर पहुंचे और वे जिन सुविधाओं के पात्र हैं वे उन्हें मिले।' जम्मू कश्मीर में 1990 पंडितों के खिलाफ अत्याचार होने पर उनके पिता परिवार को सुरक्षित महौल में रखने के लिए रैनावाड़ी में सब कुछ छोड़कर उत्तर प्रदेश के मुरादनगर आ गए। रैना ने कहा, 'मेरे पिता का मानना था कि जिंदगी का सिद्धांत दूसरों के लिए जीना है। अगर आप केवल अपने लिए जीते हैं तो वह कोई जीवन नहीं है।' उन्होंने कहा, 'बचपन में जब मैं खेलता था तब पैसे नहीं थे। पापा दस हजार रुपये कमाते थे और हम पांच भाई और एक बहन थे। फिर मैंने 1998 में लखनऊ के गुरु गोबिंद सिंह खेल कॉलेज में ट्रायल दिया। हम उस समय 10,000 का प्रबंधन नहीं कर सकते थे।' उन्होंने बताया, 'यहां फीस एक साल के लिए 5000 रुपये थी इसलिए पापा ने कहा कि वह इसका खर्च उठा सकते हैं। मुझे और कुछ नहीं चाहिए था, मैंने कहा मुझे खेलने और पढ़ाई करने दो।' रैना ने कहा कि वह हमेशा ऐसी बात करने से बचते हैं, जो उनके पिता को कश्मीर में हुई त्रासदी के बारे में याद दिलाए। उन्होंने कहा कि वह हाल के वर्षों में कश्मीर गए हैं लेकिन इसके बारे में उन्होंने अपने परिवार खासकर पिता को नहीं बताया। उन्होंने कहा, 'मैं एलओसी (LoC) पर दो से तीन बार गया हूं। मैं माही भाई (महेन्द्र सिंह धोनी) के साथ भी गया था, हमारे कई दोस्त हैं जो कमांडो हैं।' क्रिकेट के बारे में बात शुरू होने पर रैना ने सचिन तेंदुलकर और धोनी की उस सलाह को याद किया जो उन्होंने 2011 वर्ल्ड कप कप के लिए दी थी। इन दोनों खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय टीम की किसी भी रणनीति को इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के विदेशी साथी खिलाड़ियों से साझा नहीं करने को कहा था। उन्होंने कहा, 'धोनी ने इसकी शुरुआत की, सचिन तेंडुलकर ने भी कहा कि किसी को कुछ भी नहीं बताना है, क्योंकि वर्ल्ड कप आ रहा था।' उन्होंने कहा, 'इसकी शुरुआत 2008-09 में हो गई थी। 2008 में हमने ऑस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय सीरीज जीती। 2009 में, हमने न्यूजीलैंड में जीत हासिल की। 2010 में हमने श्रीलंका में जीत हासिल की। और फिर वर्ल्ड कप।' उन्होंने महान राहुल द्रविड़ की बल्लेबाजी के लिए तारीफ करते हुए कहा कि भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान किसी से कम नहीं है। रैना ने कहा, 'राहुल द्रविड़ ने 2008 से 2011 तक भारतीय टीम को जीतने में बहुत योगदान दिया। वह एक बहुत मजबूत नेतृत्वकर्ता भी थे और वे बहुत अनुशासित थे।' जब उनके मेंटर धोनी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने हाल ही संन्यास लेने वाले विश्व विजेता पूर्व कप्तान के बारे में कहा उनका रवैया हमेशा ईमानदारी और निस्वार्थ का रहा है। उन्होंने कहा, 'वह बहुत बड़े कप्तान हैं। और वह बहुत अच्छे दोस्त हैं। और उन्होंने खेल में जो हासिल किया है मुझे लगता है कि वह दुनिया के नंबर 1 कप्तान है। वह दुनिया के सबसे अच्छे इंसान भी हैं, क्योंकि वह जमीन से जुड़े हैं।'
from Sports News in Hindi: Latest Hindi News on Cricket, Football, Tennis, Hockey & more | Navbharat Times https://ift.tt/31Fd0lE
No comments