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गोल्ड मेडलिस्ट बॉक्सर कर रहा है खेत में काम
प्रतीक सिद्धार्थ, नागपुर के दिन अपने 2 एकड़ के खेत में पसीना बहाते हुए निकल जाता है। बुलधाना के सावना गांव में 22 साल का यह युवा हाथ में फावड़ा लिए पूरा दिन मेहनत करता है। अगर कोरोनावायरस के चलते सब कुछ बंद नहीं होता तो अनंत भी इस समय पटियाला में राष्ट्रीय टीम के अपने साथियों के साथ प्रैक्टिस कर रहा होता। लेकिन इस बीमारी ने सब कुछ थाम दिया है। 2019 में इंडोनेशिया में हुए प्रेजिडेंट कप में 52 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मेडल जीतने वाले इस खिलाड़ी ने कहा, 'मैं दो महीने से अधिक वक्त से खेल में काम कर रहा हूं। जबसे मैंने जूनियर में खेलना शुरू किया तब से लेकर अब तक मैं इतना अधिक समय बॉक्सिंग रिंग से दूर नहीं रहा हूं... बॉक्सिंग जल्द शुरू होनी चाहिए।' ऐसा नहीं हैं कि इस युवा को खेत में मेहनत करने से कोई गुरेज है या वह इसे लेकर कोई शिकायत कर रहे हैं। दो भाई में छोटे अनंत करीब एक दशक से अपने परिवार को मुश्किल में देख रहे हैं। हालांकि उनके परिवार के पास एक खेत है लेकिन उससे होने वाली कमाई इतनी नहीं कि परिवार का लालन पालन हो सके। उनके माता-पिता- प्रह्लाद और कुशिवार्ता- ने खेत मजदूरों की तरह काम किया। उनका भाई ऑटो-रिक्शा चलाता है ताकि किसी तरह परिवार का गुजारा चल सके। परिवार की किस्मत तब पलटी जब अनंत ने बॉक्सिंग की दुनिया में नाम कमाना शुरू किया। अनंत, पिछले चाल से नैशनल कैंप का हिस्सा हैं। 2018 में उन्हें रेलवे में जॉब मिल गई। बॉक्सिंग के चलते अनंत काफी समय अपने गांव से दूर ही रहते हैं। अनंत कहते हैं, 'बीते चार साल में यह पहली बार है जब मैं इतना लंबा समय अपने घर पर रहा हूं।' 2019 में जापान टूर पर उन्हें क्वॉर्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा था लेकिन उसी साल उनकी किस्मत में एक बड़ा बदलाव भी आया। अकोला की क्रिदा प्रोबधिनी बॉक्सिंग अकादमी से शुरुआती ट्रेनिंग लेने वाले अनंत ने 2019 में ही इंडोनेशिया में गोल्ड मेडल जीता। इसके अलावा उन्हें छह बार की वर्ल्ड चैंपियन मैरी कॉम से जीवन का सबसे अहम मंत्र सीखने को मिला, जो इस टूर का हिस्सा थीं। नजदीकी मुकाबलों में रेफरी का फैसला कभी आपके पक्ष में आता है तो कभी खिलाफ जाता है यह बॉक्सर की जिंदगी का हिस्सा है। लेकिन अनंत को मालूम है कि इससे कैसे बाहर निकलना है। वह इसके लिए मैरी कॉम का शुक्रिया अदा करते हैं। वे बताते हैं 'मैरी कॉम ने मुझे बताया, 'नतीजे को आप एक ही तरीके से नियंत्रित कर सकते हो और वह है कड़ी वापसी करना और अपने विपक्षी को मात देना।'' अनंत कहते हैं कि इस राय ने रिंग और जीवन के प्रति मेरे नजरिये को बदल दिया। अनंत को याद है कि रेलवे की नौकरी ने कैसे उनकी जिंदगी को बदल दिया। उन्होंने कहा, 'जिस दिन मुझे रेलवे में नौकरी मिली मैंने अपने माता-पिता को दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने के लिए मना कर दिया। अब वे सिर्फ हमारे खेत में काम करते हैं। सिर पर टोकरी रखकर मेरे पिता गांव में सब्जियां और खेत में पैदा होने वाली अन्य चीजें बेचते हैं।' वह कहते हैं, 'पहले मेरे परिवार के पास जमीन का यह टुकड़ा था और कमाई का कोई दूसरा जरिया नहीं था।। हमारी सारी जद्दोजेहद 'दो वक्त के खाने' तक थी। लेकिन जब मुझे नौकरी मिल गई और मैं भारत के लिए खेला, अब पूरे गांव को मुझ पर गर्व है। हमें लोग पहचानते हैं। लोग मेरे माता-पिता को इज्जत से पेश आते हैं।' अनंत के माता-पिता चाहते थे कि उनके बच्चों की अच्छी नौकरी लग जाए लेकिन पैसों की कमी के कारण वह बड़े बेटे को कॉलेज नहीं भेज पाए। अनंत कहते हैं, 'मेरे पिता चाहते थे कि मेरे सरकारी नौकरी लग जाए। चूंकि मैं खेल में काफी ऐक्टिव था तो मेरे कस्बे के एक स्पोर्ट्स टीचर ने 2008 में मेरे माता-पिता को मुझे अकोला की बॉक्सिंग अकादमी भेजने की सलाह दी।' उनके माता-पिता राजी हो गए। अनंत 11 साल अकादमी में रहे। उनके इस फैसले को अनंत ने अपनी मेहनत से सही साबित किया है।
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